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भाग्य का खेल

किस्मत किसको कहां ले जाए,

कोई समझ न पाए।

राजा को यह रंक बना दे,

रंक बादशाह बन जाए।

कोई महलो का सुख भोगे,

कोई सोए फुटपाथ पे।

कोई छप्पन भोग है खाता,

कोई खाए सूखा भात है।

किसी के पास है हेलीकॉप्टर

किसी पास है गाड़ी,

कोई चलता है साइकिल से ,

किसी को पैरों से लाचारी

सब किस्मत का खेल है प्यारे,

किसको कहां ले जाए।

नए नए यह रंग दिखाकर,

नित्य नया सिखलाए।

कोई बच्चा भीख मांगता,

कोई कूड़ा बीन रहा।

किसी के पास हैं सब सुविधाएं,

फिर भी भाग्य पे रो रहा।

किस्मत के आगे हर बंदा,

हांथ बांध लाचार है ।

कुछ सब पाकर परेशान हैं,

कुछ कुछ न पाकर भी मुस्कराएं।

जीवन के इस रंग मंच पर

सब अपने किरदार निभाएं।

किस्मत के आगे कभी ,

न जोर किसी का चल पाए।

रुबी चेतन शुक्ला

अलीगंज

लखनऊ

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2 Comments

Mohammed urooj khan

16-Apr-2024 03:54 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Gunjan Kamal

04-Apr-2024 01:42 AM

👏🏻👌🏻

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